Aravalli Crisis: क्या हम अपनी अगली पीढ़ी को सिर्फ रेत और धुआं देने जा रहे हैं?
अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, उत्तर भारत का ‘सुरक्षा कवच’ है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक नए फैसले ने इस कवच में छेद कर दिया है. पर्यावरण प्रेमी और आम जनता अब एक ही नारा लगा रहे हैं— #SaveAravalli, क्योंकि मामला अब सीधे हमारी सांसों से जुड़ गया है.
⚡ विवाद की जड़: 100 मीटर का ‘खतरनाक’ खेल
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की जो नई परिभाषा (Definition) तय की है, उसने विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है:
- ऊंचाई की शर्त: अब सिर्फ उन्हीं ढांचों को ‘अरावली’ माना जाएगा जो जमीन से 100 मीटर (328 फीट) ऊंचे हैं.
- 90% पहाड़ बाहर: कड़वी सच्चाई ये है कि अरावली का लगभग 90% हिस्सा इस ऊंचाई से कम है. यानी कानूनी तौर पर वो अब ‘पहाड़’ नहीं रहेंगे और वहां खनन (Mining) का रास्ता साफ हो सकता है.
- अशोक गहलोत की चेतावनी: राजस्थान के पूर्व सीएम ने इसे ‘अरावली का डेथ वारंट’ बताया है, क्योंकि इससे भू-माफियाओं को खुली छूट मिल सकती है.
🏜️ विनाश का रोडमैप: क्या होगा अंजाम?
अगर ये परिभाषा लागू रही, तो उत्तर भारत का नक्शा कुछ ऐसा दिखेगा:
- रेगिस्तान का विस्तार: अरावली थार रेगिस्तान की तपती रेत को दिल्ली और हरियाणा की तरफ आने से रोकती है. पहाड़ खत्म हुए तो दिल्ली-NCR बहुत जल्द रेगिस्तान में बदल जाएगा.
- पानी के लिए मचेगा हाहाकार: ये पहाड़ियां ‘नेचुरल वॉटर स्पंज’ हैं जो जमीन के नीचे पानी रिचार्ज करती हैं. इनके बिना भूजल (Groundwater) का स्तर इतना गिर जाएगा कि पीने का पानी भी नसीब नहीं होगा.
- जहरीली हवा का तांडव: अरावली दिल्ली के लिए ‘Lungs’ का काम करती है. पहाड़ नहीं रहे तो धूल भरी आंधियां और प्रदूषण सांस लेना दूभर कर देंगे.
📢 सड़कों पर उतरे लोग: “पहाड़ नहीं तो हम नहीं”
गुरुग्राम, फरीदाबाद और उदयपुर जैसे शहरों में लोग सड़कों पर उतरकर विरोध कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर अशोक गहलोत से लेकर आम पर्यावरण प्रेमियों ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलकर इस मुहिम का समर्थन किया है.
