सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथी

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि: वो पहली महिला टीचर, जिन्होंने महिलाओं के लिए खोला शिक्षा का द्वार,जानिए उनकी संघर्ष गाथा!

हर साल 10 मार्च को जब सूरज उगता है, तो हमारे दिलों में एक ऐसी शख्सियत की याद ताजा हो जाती है, जिन्होंने अपनी जिंदगी को दूसरों के लिए रोशनी बनाया। सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और कवयित्री, जिनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं। आज, 9 मार्च 2025 की रात को, जब मैं यह लिख रही हूँ, मन में उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव उमड़ रहा है। ऐसा लगता है जैसे उनकी आत्मा आज भी हमसे कह रही हो, “जाओ, शिक्षा पाओ, अपने हक के लिए लड़ो।”

एक साधारण लड़की से क्रांतिकारी बनने तक का सफर

सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगाँव में माली समुदाय में हुआ था । उस जमाने में लड़कियों का पढ़ना तो दूर, घर से बाहर निकलना भी पाप समझा जाता था। लेकिन सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर इस अंधेरे को चुनौती दी। शादी के बाद जब ज्योतिबा ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया, तो लोग ताने मारते थे, कीचड़ फेंकते थे। पर सावित्रीबाई डटी रहीं। उनके लिए शिक्षा सिर्फ अक्षरों का ज्ञान नहीं था, बल्कि आजादी का रास्ता था।

Also Read Section

1848 में पुणे के भिडे वाडा में जब उन्होंने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला, तो समाज के ठेकेदारों ने उनका जीना मुहाल कर दिया। फिर भी, वो हारी नहीं। वो स्कूल जाते वक्त दो साड़ियाँ साथ रखती थीं – एक पहनने के लिए, दूसरी रास्ते में गंदगी से बचने के लिए। क्या हिम्मत थी उनकी! एक आम इंसान की तरह उनकी जिंदगी भी मुश्किलों से भरी थी, पर उन्होंने उसे असाधारण बना दिया।

वो मसीहा जो प्लेग में भी लोगों के लिए लड़ीं

सावित्रीबाई की जिंदगी सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं थी। 1897 में जब प्लेग की महामारी फैली, तो वो बीमारों की सेवा में जुट गईं। लोग डर से घरों में छिप गए थे, पर सावित्रीबाई ने हिम्मत नहीं हारी। वो मरीजों को अपने कंधों पर उठाकर अस्पताल ले जाती थीं। इसी सेवा के दौरान उन्हें भी प्लेग ने जकड़ लिया और 10 मार्च 1897 को वो हमसे विदा हो गईं। उनकी मृत्यु सिर्फ एक अंत नहीं थी, बल्कि एक नई शुरुआत थी – उनके विचारों की, उनके सपनों की।

सावित्रीबाई फुले: जीवन और योगदान की एक झलक

विवरणजानकारी
जन्म3 जनवरी 1831, नायगाँव, महाराष्ट्र
पतिज्योतिराव फुले (शादी: 1840)
प्रमुख उपलब्धिभारत की पहली महिला शिक्षिका, लड़कियों के लिए पहला स्कूल (1848, पुणे)
शिक्षा का योगदानमहिलाओं और शोषित वर्ग के लिए शिक्षा के द्वार खोले
सामाजिक सुधारविधवा पुनर्विवाह, छुआछूत विरोध, दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष
कविताएँ“जाओ, शिक्षा पाओ” जैसी प्रेरक रचनाएँ
मृत्यु10 मार्च 1897 (प्लेग महामारी में सेवा के दौरान)
विरासतक्रांतिज्योति के रूप में याद, शिक्षा और समानता की मशाल

उनके विचार: आज भी हमारी ताकत

सावित्रीबाई कहती थीं, “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे तुम समाज को बदल सकते हो।” उनकी कविताएँ आज भी हमें झकझोरती हैं। उनकी एक पंक्ति, “जाओ, शिक्षा पाओ,” आज भी हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करना चाहती है। वो चाहती थीं कि हर औरत, हर दलित, हर शोषित इंसान अपने हक के लिए खड़ा हो। क्या हम उनके उस सपने को सच कर पाए हैं?

Also Read Section

एक माँ, एक बहन, एक दोस्त की तरह थीं वो

सावित्रीबाई सिर्फ एक समाज सुधारक नहीं थीं, वो हर उस इंसान की माँ, बहन और दोस्त थीं, जो समाज की बेड़ियों में जकड़ा था। विधवाओं के लिए उन्होंने घर खोला, अनाथ बच्चों को अपनाया। उनकी जिंदगी एक मिसाल है कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं। आज जब हम उनकी पुण्यतिथि मना रहे हैं, तो ये सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प है।

श्रद्धांजलि और संकल्प

आज रात, जब मैं ये शब्द लिख रही हूँ, मेरे सामने उनकी तस्वीर है। ऐसा लगता है जैसे वो मुस्कुरा रही हों। शायद वो कह रही हों, “मैंने जो बीज बोया, उसे फलते-फूलते देखना मेरा सपना था। “सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर मैं उन्हें नमन करती हूँ और प्रार्थना करती हूँ कि उनके सपनों का भारत हम सब मिलकर बनाएँ“।

तो आइए, उनके इस बलिदान को याद करें। एक दीया जलाएँ, उनके लिए दो शब्द कहें, और वादा करें कि उनकी तरह हम भी किसी एक जिंदगी को रोशन करने की कोशिश करेंगे। क्योंकि सावित्रीबाई आज भी हमारे बीच हैं – हर उस किताब में, हर उस स्कूल में, और हर उस इंसान के दिल में जो अपने हक के लिए लड़ता है।

“क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले को कोटि-कोटि नमन।”

मेरठ, उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव पांची में जन्मे और पले-बढ़े रोहित सैनी पेशे से इंजीनियर हैं, लेकिन उनका असली जुनून लोगों तक जानकारी पहुँचाना है। वो मानते हैं कि सीखना तभी आसान और असरदार होता है जब जानकारी अपनी ही भाषा में मिले। इसी सोच के साथ उन्होंने यह खास प्लेटफॉर्म बनाया, जहाँ जटिल से जटिल विषयों को आसान और साफ़ भाषा में समझाया जाता है—वो भी हिंदी में, ताकि हर कोई बिना किसी रुकावट के सीख सके।

Post Comment

You May Have Missed