- आठ साल से लागू है मेरठ नगर निगम में स्वकर व्यवस्था
- स्वकर फार्म भरने के बाद भी नहीं होती निगम में सुनवाई
मेरठ। नगर निगम प्रशासन ने शहर की जनता से हाउस टैक्स वसूली का रास्ता तो स्वकर योजना का सब्जबाग दिखाकर निकाल लिया, लेकिन अपने भवनों में नाम परिवर्तन के लिए लाइन में खड़ेसैंकड़ों लोगों को राहत देने के लिए कोई बात नहीं की गई है। यह हाल तब है जबकि सरकार ने नामांतरण शुल्क दरों में परिवर्तन करने का आदेश जारी कर दिया है। बस केवल नगर निगम सरकार को बोर्ड बैठक बुलाकर शासन के आदेश के प्रस्ताव पर मोहर लगानी है।
शहर की आबादी के अनुपात में भवनों की संख्या भी बढ़ रही है। सरकार के आदेश पर नगर निगम को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जीआईएस सर्वे कराया गया। जिसपर लाखों रुपये खर्च किए गए। जीआईएस सर्वे कंपनी के कर्मचारियों ने जनता से अवैध वसूली की वो अलग। जनता निगम अधिकारियों से शिकायतें करती रही, लेकिन जनता की एक नहीं सुनी गई। भवन स्वामियों पर अनाप सनाप हाउस टैक्स बिल भेज दिए गए। जब जनता ने विरोध शुरू किया और टैक्स देने से हाथ खींच लिए तो नगर निगम प्रशासन ने बीच का रास्ता निकालने की पहल की। वह भी पहल भी पुराने नियमों में ही है।
सरकार की मंशा थी कि जीआईएस सर्वे के माध्यम से शहर के प्रत्येक आवासीय और कामर्शियल भवन का पता चलेगा। सभी भवनों से निगम टैक्स वसूली कर सकेगा। पूर्व में खुलासे होते रहे हैं कि पुराने शहर में 30 प्रतिशत भवन ऐसे हैं जिनपर 50 से 150 रुपये ही हाउस टैक्स लगा चला आ रहा है। जीआईएस सर्वे में ऐसे भवन भी पकड़े गए।
दो दिन पहले ही महापौर हरिकांत अहलुवालिया और नगरायुक्त ने संयुक्त रूप से मीडिया को बताया कि जीआईएस सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर भेजे जा रहे हाउस टैक्स बिलों को वार्ड में शिविर लगाकर ठीक किया जाएगा। सभी भवन स्वामियों को स्वकर का फार्म दिया जाएगा। भवन स्वामी खुद ही अपने मकान का टैक्स लगा सकेंगे। उसी के आधार पर टैक्स जमा होगा। सवाल है कि जब स्वकर प्रणाली आठ साल पहले लागू हो गई तो निगम प्रशासन ने इसको ठीक से लागू क्यों नहीं कराया। स्वकर फार्म के आधार पर टैक्स बिलों को ठीक न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।
आठ साल से लागू है स्वकर प्रणाली
सरकार ने सभी नगर निगमों में स्वकर प्रणाली इस लिए ही लागू की थी कि भवन स्वामियों के मकानों पर अनाप सनाप हाउस टैक्स लगाए जाने और टैक्स कम करने के नाम पर अवैध वसूली की शिकायतें आयी। स्वकर की उप नियमावली लागू कर दी गई। यह व्यवस्था महापौर हरिकांत अहलुवालिया के पूर्व के कार्यकाल में लागू की गई। जिसको अब फिर से नए तरीके से पेश किया जा रहा है।
ये है स्वकर प्रणाली —
स्वकर प्रणाली के तहत भवन स्वामी अपने भवन का स्वयं हाउस टैक्स तय कर सकता है। इसके लिए नगर निगम के पास एक रेट लिस्ट वाली बुक है। जिसके आधार पर अपने इलाके की टैक्स दरों के अनुसार अपने आवासीय या कामर्शियल भवन का हाउस टैक्स तय कर सकते हैं। यह एक शपथ पत्र भी है। जिसमें स्पष्ट है कि अगर कोई भवन स्वामी टैक्स बचाने के लिए भवन की माप और स्वरूप गलत घोषित करके स्वकर का फार्म निगम में जमा करता है। और जांच में वह गलत पाया जाता है तो उस भवन स्वामी के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।
निगम वसूल रहा था 50 हजार रुपये तक सरकार ने कर दिया 10 हजार
नगर निगम प्रशासन शहर की जनता से भवन नामांतरण कराने की एवज में 50 हजार रुपये तक शुल्क वसूल रहा था। जिसको अब सरकार ने कम करके मात्र 10 हजार रुपये तक कर दिया है। सरकार के इस आदेश को जारी हुए एक माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन निगम सरकार है कि शहर की जनता को इसका लाभ नहीं दिला पायी है। सरकार के आदेशानुसार इस निर्णय को लेकर बोर्ड बैठक होनी है। बोर्ड में पास होने के बाद ही जनता को नए नामांतरण शुल्क का लाभ मिलना शुरू होगा।