4 नवम्बर की प्रात: लौटेंगे देव हमारे लोक, तभी शुरू होंगे शुभ कार्य
मेरठ। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को जगपालक भगवान विष्णु आध्यात्मिक जगत के क्षीर सागर में विराजे शेष नाग की शैय्या पर योग निद्रा में चार माह के लिए चले गए हैं। नाभि कमल में विराजे, सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के साथ तथा चरण सेवा के लिए लक्ष्मी जी तो साथ होती ही हैं अन्य दिव्य शक्तियां भी आध्यात्मिक जगत में प्रस्थान कर जाती हैं। तब प्रारम्भ होता है ‘चतुर्मास’।
चतुर्मास में केवल दिव्य श्रेष्ठ कार्य करें –
चतुर्मास में सतोगुणी व रजोगुणी दिव्य शक्तियों के आध्यात्मिक जगत में प्रस्थान कर जाने पर इस पृथ्वी पर भगवान शंकर की तमोगुणी संहारक शक्ति ही रह जाती है। इसलिए हम सब मनुष्यों को संकल्पित होना चाहिए कि इन चार माह में हम मनुष्यों से, ऐसे कोई भी कार्य न हो पायें जो भगवान शिव की तमोगुणी संहारक शक्ति को उग्र कर दे। अतः चर्तुमास में बचना होता है नकारात्मक प्रभावों से तथा तमोगुणी कार्यो से। इसलिये इन दिनों में सतोगुणी जप, पूजन, ध्यान, साधना, दान, पुण्य, हवन अवश्य करने चाहिए। भगवान शिव का शीतल जल से अभिषेक, उनके रूद्र रूप को, कल्याणकारी शिव में परिर्वतित करने के लिए। स्वय का स्वभाव भी शीतल सौम्य व आनन्दमयी बनाना चाहिए ताकि भगवान रूद्र भी आशुतोष रूप में शीघ्र प्रसन्न हो कर आनन्ददायी कल्याणकारी वरदान प्रदान कर सकें।
आइये अब जाने क्या करें विशेष, इस देवशयनी एकादशी पर –
- यह दिवस, विशेष रूप से संकल्प लेने का है जगत में दिव्यता बढ़ाने के लिए।
- सभी शुभ कार्य प्रारम्भ करने के लिए महत्वपूर्ण एकादशियों में से होती है आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी।
- कोई भी बहुत दिनों से अटका कोई भी कार्य या लम्बित योजना को शुभ आरम्भ करने का प्रमुख दिवस होता है।
- देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का चतुर्भुजी रूप, शेष नाग की शैय्या पर विराजे, उनकी नाभि कमल में विराजे ब्रह्माजी एवं भगवान विष्णु के चरणों पर सेवारत लक्ष्मी जी के चित्र का ध्यान करें। यदि इस प्रकार का चित्र मौजूद हो तो क्रमशः पीले, सफेद, लाल सुगन्धित फूलों से सुसज्जित करना चाहिए। इस तिथि पर एकादशी व्रत का पालन करना अति उत्तम तो रहता ही है साथ ही आध्यात्मिक जगत के परम धाम की ओर भी ले जाने का मार्ग प्रशस्त होता है।
- पूजन में शुद्ध देसी घी का दीपक एवं तीन धूप बत्ती का प्रयोग करना आनन्ददायी योग बनाता है।
- इस बार देवशयनी एकादशी पर गणेश लक्ष्मी पूजन भी विशेष शुभ फलदायी है।
- दुग्ध एवं फलांे का भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण करना वरदायी होता है।
- चावलों अथवा भात का प्रयोग इस दिन बिलकुल वर्जित व निषेध होता है।
- भगवान विष्णु स्वय ं सतोगुणी हैं इसलिए तमोगुणी प्याज, लहसुन का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है। मांसाहार तो किसी भी मनुष्य को कभी करना ही नहीं चाहिए।
- भगवान विष्णु के दिव्य लोक में निद्रा व शयन की तैयारी के लिए, पूरे दिन ध्यान जप, कीर्तन, एवं रात्रि जागरण विशेष फलदायी होता है।
यह जानकारी ज्योतिष वैज्ञानिक भारत ज्ञान भूषण ने दी है। इनका कहना है कि प्रकार जगपालक महा विष्णु को उनके अपने लोक के कर्तव्य पालन के लिए जो उनके आध्यात्मिक जगत से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है केवल चार माह के लिए इस दिन इस प्रार्थना के साथ हम विदा करते हैं कि आठ माह के लिए हमारे इस भौतिक जगत में पुनः पधारियेगा देव उत्थान एकादशी पर, ताकि आपके आगमन पर पुन शुभ कार्य विवाद आदि का प्रारम्भ हो सके।