पुराना इतिहास संजोए हुए है मंदोदरी तालाब
🟩मेरठ के जर्रे जर्रे में महाभारत, रामायणकालीन और 1857 की क्रांति की खुशबु आती है। इस कड़ी में हम आपको मेरठ शहर में एक ऐसी ऐतिहासिक जगह की जानकारी दें रहे हैं जो रामायण काल की याद ताजा करती है। यह वह जगह है जिसको कभी भगवान श्रीकृष्ण के नाम बसाया गया था। इसका नाम रखा था श्यामनगर। घने वनों से घिरा, हराभरा रहने वाला यहा गांव नहीं बल्कि शहर का बड़ा हिस्सा बन गया है।
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जिसको अब श्यामनगर कम और पिलोखड़ी रोड के नाम से जाना जाता है। वैसे भी अब यह स्थान पूरी तरह मुस्लिम समुदाय से घिर चुका है। कभी इस क्षेत्र में हिंदु परिवार रहते थे। सभी परिवार दूसरे इलाकों में चले गए हैं। यही कारण है कि हाल में मंदोदरी के पक्के तालाब को देखने और शिव मंदिर में पूजा करने वालों की संख्या भी नगण्य ही रह गई है। यह तालाब एवं शिव मन्दिर ऋषि आश्रम के नाम से भी जाना जाता है तथा यह ऋषि आश्रम नैमिषारण्य (जनपद सीतापुर) की एक शाखा एवं सम्पत्ति बतायी गयी है। फिर भी इस ऐतिहासिक धरोहर की गाथा सुनकर आज चोंक जाएंगे।
मयासुर ने बेटी मंदोदरी के नहाने के लिए बनवाया था पक्का तालाब
🟩बताते हैं कि श्यामनगर में यह पक्का सीढीदार तालाब मयराष्ट्र के अधिपति एवं राक्षसों के वास्तु विशेषज्ञ मयासुर ने बनवाया था। इस तालाब में पानी भरने के लिए कोतवाली से अंडरग्रांउड नाली आती थी। जिसके चिंह आज भी मौजूद हैं। तालाब में स्नान करने के लिए मयासुर की बेटी मंदोदरी आती थी। तालाब की प्रत्येक भुजा लगभग 55 मीटर है और गहराई लगभग 10-12 फुट बतायी जाती है। तालाब में उतरने के लिए लगभग डेढ़-डेढ़ फीट ऊंचाई वाली सीढ़ियां हैं। तालाब के दक्षिण में पशुओं को पानी पीने एवं बाल्टियों से पानी बाहर ले जाने के लिए ढलावदार घाट भी है।
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तालाब के पश्चिम में महिलाओं के लिए बना है स्नानार्थ पृथक घाट
🟩तालाब के पश्चिम में लगभग 15 फुट ऊंची षटकोणीय दीवार बनाकर स्त्रियों के स्नानार्थ पृथक घाट बनाया गया है। इसी के साथ एक कमरा कपड़े आदि बदलने के लिए बनाया गया था। चारों ओर से बन्द यह घाट स्त्रियों के लिए सुरक्षित था। लेकिन अब मौके पर पृथक घाट क्षीणहीण स्थिति में है वहीं कमरों में बाहरी परिवार रह रहा है।
शिव और दुर्गा मंदिर में होती है आरती
🟩मंदोदरी के पक्के तालाब के किनारे जहां सिद्धेश्वर महादेव मंदिर है, वहीं एक दुर्गा मंदिर भी है। बताते हैं कि मंदोदरी तालाब में स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा के लिए भी रुकती थी। राजाशाही शान- सुरक्षा एवं पर्दे की दृष्टि से पक्के तलाब के चारों ओर भवन एवं मन्दिर बनाये गये। कुछ आज भी हैं। इसे आज भी मन्दोदरी का तालाब कहा जाता है।
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यहां पूजा करने वाले की शत्रुओं पर होती है विजय
🟩वर्तमान में यह स्थान शत्रु दमन तीर्थ के नाम से मुकदमें बाजों में विशेष प्रसिद्ध है। बताते हैं कि ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां पूजा करने से शत्रुओं का विनाश एवं मुकदमें में जीत प्राप्त होती है। ऐसे लोग विशेष रूप से पूजा-अर्चना एवं मनौतियां करते हैं। शत्रु दमन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध होने का कारण पुराणों में वर्णित वह आख्यान हैं। जिसमें बताया गया है कि परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि ने देवताओं के शत्रु प्लक्ष राक्षस का वध यहीं पर किया था। प्लक्ष से पलख-पोखरी होते-होते यह पिलोखड़ी हो गया।
यज्ञशाला में नहीं गूंजते वैदिक मंत्र
🟩शिव मंदिर के सामने ही यज्ञशाला है। जहां पर कभी यज्ञ के दौरान वैदिक मंत्रों का उच्चारण होता था। अब यज्ञ शाला अपने धार्मिक और ऐतिहासिका दर्शा रही है। पुलिस ने इस यज्ञशाला को कबाड़ स्थल बना लिया है। चोरों से पकड़े गए सामान को रखा यहां रखा जा रहा है।
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पिलोखड़ी पुलिस ने बनायी है चौकी
🟩मंदोदरी तालाब की भूमि पर थाना लिसाड़ी गेट ने पिलोखड़ी के नाम से पुलिस चौकी खोली हुई है। सुरक्षा की दृष्टि से तो अच्छा है। पुलिस ने चोरी के पकड़े वाहनों से जमीन का काफी हिस्सा घेरा हुआ है।
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🟩मां दुर्गा मंदिर के पुजारी राजकुमार शर्मा ने बताया कि तालाब की भूमि को लेकर न्यायालय में वाद चल रहे हैं। स्वामी नरदानद महाराज और स्वामी कृष्णनंद महाराज की अपनी अपनी दावेदारी है। परिसर में दोनों महाराजों की ओर से ही कुछ लोगों को रखा गया है। कोर्ट में विवाद के कारण तालाब का भी जीर्णोद्धार नहीं हो सकता है। अब मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में सुमार इस स्थान पर हिंदु पहुंचते ही नहीं हैं। जहां मां के मंदिर में हम आरती करते हैं वहीं शिव मंदिर में आकाश सैनी पूजापाठ करते हैं। शहर के दो तीन भक्त ऐसे हैं जो कभी कभी मंदिर में आते हैं।
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अगर आप किसी ऐतिहासिक घटना पर कुछ लिखने की जिज्ञासा रखते हैं, तो वह अपना लेख 500 शब्दों में लिखकर rohitsainics8@gmail.com भेज सकते हैं। घटना तथ्यात्मक होनी चाहिए। फोटो सहित। आपके ऐसे लेख पर संपादकीय मंडल विचार करेगा।
Whatever has been explained regarding Mandodari Talab,and It’s sorrounding Historical monuments.They all are Belong to the era of Mahabharata & Hastinapur.