आज के युग में हम ऐतिहासिक और धार्मिक घटनाओं को भी भूलते जा रहे हैं। खासकर नई युवा पीढ़ी पुराने इतिहास से कोसो दूर है। या तो वह इतिहास और धार्मिक मान्यताओं को जानना नहीं चाहती या फिर कोई बताने वाला नहीं है। एक समय था कि जब दादा-दादी और नाना-नानी कहानियों में ही बच्चों को अपने देश और दुनिया का पूरा इतिहास और धार्मिक मान्यताएं सुना दिया करते थे।
अब वह दिन शायद ही लौटकर आएंगे। हमने एक छोटासा प्रयास किया है कि आपको पहले चरण में महाभारत , रामायण कालीन ऐतिहासिक और धार्मिक घटना व मान्यताओं के बारे में बताएंगे।
रामायणकाल का इतिहास समेटे हुए है सूरजकुंड पार्क
🟩देश की राजधानी दिल्ली से 50 किमी दूरी पर स्थित उप्र का मंडल मुख्यालय मेरठ महानगर वैसे तो 1857 की क्रांति धरा के नाम से भी जानी जाती है। इसके साथ साथ महाभारत, रामायाण कालीन और धार्मिक मान्यताओं में भी अपना अलग स्थान रखती है। हम आपको पहले चरण में महानगर के बीच सूरजकुंड पार्क की ऐतिहासिकता और धार्मिक मान्यताओं से रुबरू कराते हैं। सूरज कुंड एक प्रसिद्ध तालाब है।
वह अलग बात है कि अब इस तालाब में पानी नहीं है। परंतु गौरवशाली इतिहास आज भी जिंदा है। सूरजकुंड तालाब के पूवी दिशा में जहां बाबा मनोहरनाथ मंदिर है वहीं पश्चिम में शिव मंदिर, उत्तर दिशा में माता सती का मंदिर और दक्षिण दिशा में आर्य समाज का मंदिर है। सूर्योदय से पहले ही मंदिरों में भक्तियम संगीत बजते हैं। महानगर ही नहीं बल्कि आसपास के प्रदेशों से भी लोग इस तालाब के दर्शन करने पहुंचते हैं।
सूरजकुंड में नहाने से हो जाते थे चर्म रोग दूर
🟩रामायण कालीन: प्रारंभिक काल में मेरठ मयदन्त की राजधानी ‘मयराष्ट्र‘ थी। मयदन्त का महल पुरानी कोतवाली पर स्थित था। इसके चारों ओर गहरी खाई थी। जिसको अब खंदक के नाम से जानते हैं। मयदन्त की पुत्री मंदोदरी सुन्दर, सुशील और राजनीतिज्ञ थी। इस स्थान पर वनों के बीच एक तालाब था।
शुद्ध वातावरण, तपस्थली, वैदिक भजनों की लहरों से लहराती हवा, जंगली जड़ी-बूटियों का प्रभाव, सूर्य की किरणें और जल का स्रोत, कि इस कुंड का जल चर्म रोगों को ठीक करता था। इस मान्यता के चलते आज भी बाहरी लोग सूरजकुंड पहुंचते हैं। वह अलग बात है कि अब यहां उन्हें तालाब में पानी नहीं मिलता। बताते हैं कि सूरजकुंड में नहाने से चर्म रोग जैसे- दाद व कुष्ठ रोग ठीक हो जाते थे।
मंदोदरी ने करायी थी पक्का तालाब और शिव मंदिर की स्थापना
🟩मन्दोदरी ने सूर्य भगवान का निवास एवं प्रभाव स्थल मानकर यहां पर पक्का तालाब और शिव मंदिर की स्थापना कराई थी।
सूरजकुंड पर सूर्यदेव ने कुंती को दिया था पुत्र का वरदान
🟩महाभारत काल: महाभारत काल में यह स्थान खाण्डवी वन के नाम से प्रसिद्ध रहा। महाभारत के अनुसार दुर्वासा मुनि ने कुन्ती को एक मन्त्र देकर कहा था कि इस मन्त्र के जाप से जिस देवता का आह्वान करोगी वह उपस्थित होकर आशीर्वाद देगा।
बताते हैं कि एक बार कुन्ती सूर्य कुंड पर आई। सूर्य कुंड की महिमा देख-सुन कर उसने मंत्र की परीक्षा लेने की नियत से सूर्य देव का आह्वान किया। सूर्य देव ने प्रकट होकर उन्हें पुत्र का आशीर्वाद दिया। जिस आशीर्वाद से कर्ण के रूप में प्रसिद्ध हुआ। कर्ण को सूर्य कुंड से विशेष लगाव था।कर्ण अक्सर हर विशेष उत्सव पर यहां आकर सूर्योपासना एवं दान किया करते थे।
बाबा मनोहर नाथ के साथ साथ चलती थी दीवार
🟩सूर्य कुंड में एक और महान तपस्वी एवं सिद्ध सन्त बाबा मनोहर नाथ रहते थे। बाबा मनोहर नाथ प्रसिद्ध सूफी सन्त शाहपीर के समयकालीन थे।
बताते हैं कि एक बार शाहपीर अपनी तपस्या का प्रभाव दिखाने शेर पर चढ़कर बाबा मनोहर नाथ के पास आये। उस समय बाबा दीवार पर बैठे दातून कर रहे थे। शाहपीर को देखकर बाबा ने दीवार से कहा चलो पीर साहब की अगुवानी करनी है। ऐसे थे दोनों संत। आज यहां पर बाबा मनोहरनाथ की समाधि है। साथ में देवी और शिव का मंदिर है।
सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है। महामंडलेश्वर मां नीलिमानंद बताती हैं कि जो भी सिद्ध पीठ पर आकर मनोकामना मांगता है वह पूरी होती हैं। उन्होंने बताया कि बताते हैं कि बाबा के पास लगभग 300 वर्ष पूर्व कस्बा लावड़ के प्रसिद्ध सेठ आये और अपने कुष्ठ रोग का इलाज पूछा। बाबा ने उपाय के रूप में पीने एवं स्नान के लिए सूरज कुण्ड के जल का प्रयोग बताया। कुछ दिनों में लाला ठीक हो गये । तब सन् 1700 में लाला ने सूरजकुंड तालाब का विस्तार एवं जीर्णोद्वार कराया ।
सूरजकुंड पार्क अब बन गया है पर्यटकों का केन्द्र
🟩सूरजकुंड पार्क में इस समय पानी भले ही न हो, लेकिन यहां हरियाली की भरमार है। सुबह चार बजे से ही यहां शहर भर से पुरुष, महिलाएं, बच्चे पहुंचना शुरू हो जाते हैं। जहां पार्क के बीच में विशाल पोल पर फहर रहा तिरंगा देशभक्ति का जज्बा पैदा करता है वहीं रंग बिरंगी लाइटें और बीच से गुजर रहे फुटपाथ जिनपर लोग टहलते और दौड़ते हैं।
व्यायाम के लिए प्रशासन ने पार्क में ओपन जिम भी लगाया हुआ है। सूर्योदय के समय यहां पर संघ की शाखा भी लगती हैं। जहां बुजुर्गों के लिए बैठना का अच्छा स्थान है वहीं बच्चों के खेलने की भी अच्छी जगह मानी जाती है। साथ ही सूरजकुंड पार्क की एक एक ईंट आज भी अपनी मूल ऐतिहासिकता को दर्शाती नजर आती है।
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Suraj kund park to khii baar gya hu pr uska ithiyaas aaj pta lga maaja aagya padhkee👍👍👍
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इस युग में जहां अंग्रेजी की दौड़ में सभी लोग जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ऐसी परिस्थिति में आपने हिंदी में जानकारी नाम से वेबसाइट शुरू करके और वह भी भारत की ऐतिहासिक धार्मिक और नई युवा पीढ़ी के लिए अनेकों नई जानकारी हिंदी में शुरुआत करके एक शानदार पहल की है इसके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं….. हिंदी हिंदुस्तान
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