भारतीय इतिहास के पन्नों में सम्राट अशोक (Samrat Ashok) का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। उन्हें ‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ और ‘देवानामप्रिय’ (देवताओं का प्रिय) के नाम से भी जाना जाता है। मौर्य वंश के इस महान शासक ने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि कलिंग युद्ध के बाद पूरी दुनिया को शांति और अहिंसा का मार्ग भी दिखाया।
Samrat Ashok भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण राजाों में से एक थे। उनकी जीवनी भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यहां हम सम्राट अशोक के बारे में जानकारी देंगे जो Samrat Ashok के जीवन के अंश को शामिल करेगी। सम्राट अशोक का जन्म मौर्य वंश के एक राजकुमार के रूप में हुआ था। उनके पिता का नाम सम्राट बिंदुसार था जो बहुत समझदार और शक्तिशाली राजा थे। Samrat Ashok का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था।
Samrat Ashok की जीवनी में उनके संघर्ष और सफलता की कहानी शामिल है। उनके पिता के निधन के बाद, सम्राट अशोक ने अपनी माता के सहारे सम्राट का ताज़ागी उत्तराधिकारी बना। उनके शासनकाल में उन्होंने बहुत सारे विस्तार किए थे, और उन्हें बहुत सारे विजय मिले थे।सम्राट अशोक की जीवनी में उनके धर्मानुयायी रूप की भी बहुत ज्यादा चर्चा होती है।
उन्होंने बौद्ध धर्म को समर्थन दिया था और उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान धर्म शिलालेखों का निर्माण करवाया था। उनके इस धर्मानुयायी उत्साह और दृढ़ संकल्प के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ था। उन्होंने बौद्ध धर्म को प्रचारित करने के लिए स्तूप बनवाए थे जो उनकी यात्रा के दौरान बनाये गए थे।
सम्राट अशोक जैसे एक महान शासक की जीवनी में उनके जीवन के अंशों के साथ-साथ उनके सामाजिक और आर्थिक योगदान का भी जिक्र होता है। उन्होंने भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया था और उन्होंने भारतीय समाज में न्याय के लिए कई कदम उठाए थे।सम्राट अशोक का शासनकाल 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक था। उनके शासनकाल में भारत में शांति, समृद्धि और समानता का वातावरण था। उनकी जीवनी आज भी भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण भाग है।
इस तरह से, हमने सम्राट अशोक की जीवनी के बारे में बताया है जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उम्मीद है कि यह आपके लिए उपयोगी और ज्ञानवर्धक साबित होगा।
महान योद्धा Samrat Ashok का बचपन से लेकर शिक्षा तक का सफर
Samrat Ashok का जन्म304 ईसा पूर्व में मौर्य राजवंश के राजा बिंदुसार के यहाँ हुआ था। उनका बचपन उनके जीवन का सबसे रोमांचक अध्याय था। अशोक की मां शुभद्रांगी एक यूनानी थी और उनके पिता बिंदुसार बहुत संवेदनशील थे। बचपन में अशोक का मन खिलखिलाते सफरों और खेलों में लगा रहता था।
Ashok का बचपन बहुत हलचल से भरा था। उनकी मां शुभद्रांगी के प्रभाव से वे यूनानी और रोमन संस्कृति से परिचित हो गए थे। उन्होंने अपने बचपन में शासन के लिए कुछ अनुभव भी हासिल किये थे।जब उनके पिता बिंदुसार का अंतिम समय आया तो राज्य को अधिकार करने के लिए उनके भाई सुसीमा और अशोक के बीच संघर्ष शुरू हो गया था।
सुसीमा अशोक की विजय के बाद राज्य से बाहर निकल गया था।अशोक के बचपन में उन्होंने धनुर्विद्या, वाणिज्य, शिल्पकला और रचनात्मक लेखन जैसी कलाएं सीखी थीं। उन्होंने जीवन में दो विवाह किये थे। पहली श्रीमती देवी थीं जिनसे उन्हें एक बेटा था। दूसरी रानी कुंदल देवी थीं जिनसे उन्हें दो बेटे थे।बचपन में ही उन्होंने राजा बिंदुसार के साथ बहुत समय व्यतीत किया था और उनकी सीख उन्हें शासन की कला सीखाई थी।
Samrat Ashok एक दयालु और न्यायप्रिय राजा
जब अशोक के पिता बिंदुसार की मृत्यु हो गई तो उन्हें मौर्य साम्राज्य का राजा बनाया गया। वे राजा बनने के बाद बहुत संवेदनशील थे और न्यायप्रिय थे।अशोक की शासनकाल की शुरुआत में वे एक सामान्य राजा के तरह शासन करते थे। लेकिन उन्होंने अपने शासन के दौरान बहुत सारे सुधार किए जो उन्हें एक महान साम्राज्य के रूप में याद किया जाता है।
अशोक ने दीनदयालुता को अपना मूल मंत्र बनाया था। उन्होंने सभी धर्मों को समान माना था और सभी धर्मवादियों को समानता के साथ देखा था। उन्होंने संघर्षों के समाधान के लिए धर्म का उपयोग किया था। उन्होंने धर्म के जरिए लोगों को समझाने की कोशिश की थी।अशोक ने धर्मशास्त्र और संस्कृति के विस्तृत ज्ञान का संचार किया था। वे बौद्ध धर्म के शिष्य थे और अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने बौद्ध धर्म के बहुत से सिद्धांतों को अपनाया था।अशोक ने निजी जीवन में भी बहुत से कार्य किए थे।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक का धर्म परिवर्तन
कलिंग युद्ध के बाद, सम्राट अशोक का रूढ़िवादी धार्मिक दृष्टिकोण परिवर्तित हुआ था। उन्होंने इस युद्ध में बड़ी संख्या में मौर्य सैनिकों को खो दिया था, जिससे उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित हुई थी।इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रति अधिक उत्साह और समर्पण दिखाने लगे थे। वे बौद्ध धर्म को समर्थन देने लगे थे और उन्होंने अपने समस्त साम्राज्य में बौद्ध धर्म के अनुयायी बनाने के लिए बहुत से कदम उठाए। उन्होंने अपने समय के अनेक महत्वपूर्ण बौद्ध धर्म गुरुओं से मिलने का अवसर प्राप्त किया था, जिनसे उन्हें धार्मिक और नैतिक शिक्षा मिली थी।
उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी संकल्पना का अभिव्यक्ति करने के लिए स्तूप, मंदिर और बौद्ध विहार जैसे संग्रहालयों का निर्माण करवाया। इनमें से सबसे प्रसिद्ध है साँची स्तूप, जो एक महान बौद्ध स्तूप के रूप में जाना जाता है।
अशोक के लिए कलिंग युद्ध एक बड़ा परीक्षण था। यह युद्ध 261 ईसा पूर्व में हुआ था और इसमें मौर्य सेना ने कलिंग के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। इस युद्ध में लगभग 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। अशोक के जीते हुए कलिंग युद्ध के बाद, उन्होंने धर्म के प्रचार के लिए अपनी नीतियों में कुछ बदलाव किए। उन्होंने अनेक बौद्ध मंदिर बनवाए और सभी जीवों की रक्षा के लिए नए कानून बनाए।
उन्होंने लोगों को धर्म के प्रति जागरूक किया और उसका महत्व को समझाया।
अशोक, मौर्य वंश का एक सम्राट था जो सन् 268 ई. पू. से सन् 232 ई. पू. तक शासन करता रहा। उन्होंने अपने शासनकाल में धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। कुछ उनके धर्मानुयायी कार्यों के बारे में निम्नलिखित हैं:
- सत्याग्रह और अहिंसा के प्रचार: अशोक ने अपने समय में अन्य शासकों के अपेक्षा धर्म के प्रचार में अधिक जोर दिया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह का प्रचार किया और लोगों को उनकी महत्वता समझाया।
- धर्म के लिए प्रसार: अशोक ने अपने समय में धर्म के प्रसार के लिए कई उपाय अपनाए। उन्होंने स्तूप और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया जिससे लोगों को धर्म का प्रसार करने में मदद मिलती थी।
- अन्य धर्मों के प्रति समझौता: अशोक ने अपने समय में अन्य धर्मों के प्रति समझौता बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने बौद्ध धर्म को प्रचारित किया और उन्हें अपने समय में शान्ति और समझौता का प्रतीक बनाया।
- अशोक ने अपने शासनकाल में धर्म संस्थाओं के विकास के लिए भी उत्साह से काम किया। उन्होंने संघ और संघमित्र जैसी संस्थाओं की स्थापना की जिससे धर्म से जुड़े लोगों को एक साथ लाने में मदद मिलती थी।
- शिक्षा के प्रचार: अशोक ने शिक्षा के प्रचार के लिए भी काफी प्रयास किए। उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझाया और शिक्षा के लिए स्कूल और शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना की।
इन सभी कार्यों के अलावा, अशोक ने दानशीलता और दयालुता जैसे धर्मिक गुणों के प्रचार के लिए भी काम किया। उन्होंने दान की भावना को बढ़ावा दिया और लोगों को दया की भावना से जुड़ाया। अशोक के धर्मानुयायी कार्य भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक हैं जो धर्म के प्रसार और धर्म संस्थाओं के विकास के लिए उनके प्रयासों का सबूत हैं।
Samrat Ashok: शांतिपूर्ण राजनीति का नेतृत्व और भारतीय समृद्धि का नया दौर
Samrat Ashok ने कुछ विशेष कदम उठाए जिनसे उनके शासनकाल में भारत में शांति व्याप्त हुई। उन्होंने धर्म के माध्यम से भारत में एक आदर्श समाज के विकास के लिए काफी कुछ किया। उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के साथ-साथ सभी धर्मों को समानता के साथ समझने का संदेश दिया।
अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में साम्राज्य के विकास का एक स्थिर विकास हुआ। अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में अनेक निर्माणकार्य हुए जैसे लकड़ी के पुल, सरकारी भवनों का निर्माण, सड़कों का निर्माण आदि।अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में विविध कलाएं और साहित्य का विकास हुआ। बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ लोगों के मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा मिला जिससे भारत में अनेक लेखक, कवि, और कलाकार उत्पन्न हुए।
अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से भी विकास हुआ।उन्होंने अपने शांतिपूर्ण शासनकाल में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को प्रोत्साहन दिया। वह बौद्ध धर्म के लिए धर्म स्थल निर्माण करवाने के लिए भी प्रेरित करते थे। अशोक की महत्त्वाकांक्षा थी कि समस्त लोग उनके द्वारा दिए गए उपहारों से संतुष्ट हों और साधनों की कमी को न जाने दें।
अशोक ने भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी कई नई पहल की। उन्होंने जनपद के प्रशासन को मजबूत करने के लिए सम्भवतः पहली बार भारत में जनपदों को विभाजित किया था। वह शिलालेखों के माध्यम से लोगों को शिक्षा और ज्ञान के लिए प्रोत्साहित करते थे।अशोक की मृत्यु के बाद भारत में उनकी याद को सदा याद रखा गया। उन्होंने अपने शासनकाल में भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण रोल निभाया था और उनके शांतिपूर्ण शासनकाल को भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय माना जाता है।
सम्राट अशोक का जीवन परिचय(Samrat Ashok History in Hindi)
| विवरण | जानकारी |
| पूरा नाम | देवानामप्रिय अशोक मौर्य |
| जन्म | 304 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (पटना) |
| शासन काल | 268 ईसा पूर्व – 232 ईसा पूर्व |
| राजवंश | मौर्य राजवंश |
| राज्याभिषेक | 269 ईसा पूर्व |
| राजधानी | पाटलिपुत्र |
| प्रमुख युद्ध | कलिंग का युद्ध (261 ईसा पूर्व) |
| धर्म | बौद्ध धर्म (कलिंग युद्ध के बाद) |
सम्राट अशोक का परिवार (Family)
सम्राट अशोक का परिवारराजा बिंदुसार और उनकी पत्नी देवी शुभद्रांगी (जिन्हें धर्म प्रचार के लिए भी जाना जाता है) से संबंधित था। अशोक के दो बड़े भाई बिजय और सुमान थे, जो दोनों उनसे बड़े थे। उनके साथ एक छोटी बहन भी थी जिसका नामविदर्भ भद्रकल था।अशोक ने राजस्थान के नागौर से विवाह किया था और उनकी पत्नी का नाम रानी देवी होता था। उन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम महेंद्र और तिष्य होते हैं।
सम्राट अशोक के परिवार में कुछ ऐसे व्यक्ति भी शामिल थे जो उन्हें बहुत प्रभावित करते थे। उनमें से एक थे महामाता, जिन्होंने अशोक को बौद्ध धर्म के प्रचारक बनने के लिए प्रेरित किया था। दूसरे थे राजगुरु वसुमित्रा, जो अशोक के जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें संतुलित और शांतिपूर्ण बनाने में मदद करने के लिए थे।
सम्राट अशोक की शिक्षा (Education)
सम्राट अशोक की शिक्षा का विस्तार महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके व्यक्तित्व और शासनकाल के विकास में अहम भूमिका निभाता है। अशोक के शिक्षा के विषय में तथ्यों का कोई स्पष्ट विवरण नहीं है, लेकिन उन्हें विवेक, धर्म, नैतिकता और अनुशासन की शिक्षा मिली थी।
बचपन से ही उन्हें राजनीति के बारे में शिक्षा दी जाती थी। उनके पिता राजा बिंदुसार भी राजनीति में अधिक रुचि रखते थे और इसलिए वह अशोक को भी इस विषय में प्रशिक्षित करने में लगे रहते थे। उनके पिता के अलावा, अशोक को उनके बड़े भाई सुसीम और वित्तोभा भी शिक्षा देते थे।अशोक की शिक्षा का एक अहम हिस्सा धर्म था। उन्हें बौद्ध धर्म की शिक्षा मिली थी और वह अपने जीवन के बाद इस धर्म का एक प्रभावशाली प्रचारक बना। अशोक की बौद्ध धर्म पर जीवन भर की अध्ययन के बाद, उन्होंने अपने राज्य के अन्य धर्मों के प्रति आदर और समझदारी व्यक्त की।
अशोक को अपने पिता से अधिक माता का प्रभाव महसूस हुआ था। शुभद्रांगी, अशोक की मां, एक यूनानी थी और उन्होंने अपने पुत्र को ग्रीक, अरबी, फारसी, चीनी आदि कुछ भाषाओं का ज्ञान दिया था। वह अशोक को धार्मिक शिक्षा भी देती थी और उन्हें जैन और बौद्ध धर्म के बारे में भी सिखाती थी। अशोक ने भारतीय ज्ञान, धर्म और संस्कृति का गहन अध्ययन किया था और इसे अपने शासनकाल में प्रभावी रूप से प्रचारित करने के लिए भी प्रेरित किया।
बौद्ध धर्म के प्रचारक थे, महान सम्राट अशोक (Samrat Ashok History in Hindi)
सम्राट अशोक के जीवन में बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में, उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार और विस्तार किया था। इससे पहले, अशोक एक हिंदू थे और अपने शासनकाल के प्रारंभ में उन्होंने बहुत से हिंदू मंदिरों का निर्माण करवाया था।
इसके बाद, अशोक का जीवन बदल गया जब कलिंग युद्ध के बाद उन्हें दुख का अनुभव हुआ। इससे पहले वे एक खूबसूरत, विजेता सम्राट थे, लेकिन युद्ध में हुए खूनरंजित मनोवृत्ति ने उनकी मानसिक स्थिति को बदल दिया। इस बदलाव में उन्हें बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण योगदान मिला।अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को समझा और उन्हें अपने शासनकाल में प्रचारित करने का प्रयास किया। उन्होंने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में बौद्ध संघ के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान कीं, उन्होंने बौद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया।
सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म के प्रति आस्था की गहराई उनके शासनकाल में देखी जा सकती है। उन्होंने बौद्ध धर्म का बहुत ही प्रचार-प्रसार किया और इसे अपने शासन के अंतर्गत सम्मानित भी किया। अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म अधिकांश भागों में फैल गया था।
अशोक ने अपने संबंधित विवरणों और उनकी शिक्षा के आधार पर बौद्ध धर्म का विश्वास किया था। उन्होंने बौद्ध धर्म के मूल तत्वों का प्रचार किया, जैसे दुःख से मुक्ति, सहिष्णुता, ध्यान और मैत्री। अशोक का धर्म एक उदार धर्म था, जो लोगों को संघर्ष के बजाय शांति और समझौते की राह पर लाने का संदेश देता था।अशोक का बौद्ध धर्म संबंधित निर्देश दिए गए उनके अशोक स्तंभों में दिखाई देता है। ये स्तंभ उन्होंने देश-विदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए बनवाए थे।
सम्राट अशोक की नीतियां और उनका प्रभाव
सम्राट अशोक की नीतियों ने एक समृद्ध और समाधानवादी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी स्वयं की जीवन-शैली में भी अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता और सम्मान के अभ्यास कर अपनी ज़िन्दगी को उन्नत करने का प्रयास किया।अशोक की नीतियों में सबसे महत्वपूर्ण नीति थी धम्मा, जिसे उन्होंने शिलालेखों के माध्यम से व्यापक रूप से फैलाया था।
धम्मा के माध्यम से उन्होंने लोगों को अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता, त्रुटि से मुक्ति और जीवन में सुख और शांति के लिए उत्साहित किया।अशोक ने अपनी नीतियों के माध्यम से एक बड़े राज्य के नागरिकों के जीवन को सुधारा और उन्हें समझाया कि धर्म एक विश्व-व्यापी अनुभव है। उनके समय में भारत और बौद्ध धर्म दुनिया के अन्य क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैल गया।
सम्राट अशोक के राज्यकाल में विज्ञान और कला का विकास
सम्राट अशोक के राज्यकाल में विज्ञान और कला का विकास भी देखा गया था। अशोक ने विज्ञान और तकनीक को प्रोत्साहन दिया था। उन्होंने पुलों, सड़कों और भवनों का निर्माण कराया। वे विविध विदेशी भाषाओं में लेख लिखते थे।
सम्राट अशोक के समय में कला का भी विकास हुआ था। उन्होंने राजकीय विस्तार के साथ-साथ संस्कृति और कला को भी बढ़ावा दिया। अशोक ने बौद्ध धर्म के लिए अधिक से अधिक सुंदर भवन बनवाये जो आज भी भारत की संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में माने जाते हैं। इसके साथ ही, सम्राट अशोक ने स्वयं भी कला के क्षेत्र में रुचि दिखाई थी। वे संगीत और कविता के लिए प्रशंसा प्राप्त करते थे और कुशल कलाकारों को प्रोत्साहन देते थे। अशोक ने भारतीय कला के विविध रूपों, जैसे कि वास्तुकला, सिल्क वस्त्र बुनाई, गांधार शैली की शिल्पकला, ताल प्रणाली आदि को प्रोत्साहन दिया।
सम्राट अशोक की धर्म नीतियों का प्रभाव
सम्राट अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। अशोक धर्म के महत्व को समझता था और उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पालन किया था। इससे पूर्व अशोक एक राजनेता थे जो शासन के माध्यम से सत्ता बनाए रखने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते थे।लेकिन कलिंग युद्ध के बाद अशोक का मनोवृत्ति बदल गया था और उन्होंने अपनी शासन नीतियों को संशोधित कर बौद्ध धर्म के आधार पर नई नीतियां बनाईं।
वे सभी जीवों की रक्षा के लिए समर्पित थे और शासन की नीतियों के द्वारा लोगों के जीवन में सुधार करना चाहते थे।अशोक के धर्म नीतियों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि उपलब्ध थे। उन्होंने धर्म के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश की और समाज में शांति और सौहार्द का महसूस कराया।अशोक की धर्म नीतियों का प्रभाव वर्तमान समय तक बना रहा है।
धर्म जागरूकता: सम्राट अशोक का संदेश
सम्राट अशोक की मृत्यु की तारीख आज तक निश्चित नहीं हुई है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 232 ईसा पूर्व में अपने 60 वर्ष की आयु में इस संसार को अलविदा कह दिया था।
सम्राट अशोक के बाद उनके पुत्र महेन्द्र थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार फैलाया था। उनके बाद उनके नाती सम्राट दशरथ ने शासन किया था। सम्राट अशोक ने भारत को एक नया राजनैतिक दृष्टिकोण दिया था जो शांति और सौहार्द के आधार पर था। उन्होंने धर्म और अधिकार के माध्यम से देश के विकास में अहम भूमिका निभाई थी। उनके समय में भारत की स्थिति एक समृद्ध और विकसित देश की तरफ बढ़ती जा रही थी।
सम्राट अशोक फिल्म एवं सीरियल (Movie and Serial)
सम्राट अशोक की जीवनी के अतिरिक्त, उन्होंने भारतीय सिनेमा और टीवी शो के माध्यम से भी लोगों के दिलों में जगह बनाई है। इसके लिए कुछ ऐसे महत्वपूर्ण फिल्मों और सीरियल के बारे में जानकारी निम्नलिखित है।
- सम्राट अशोक (2001) – इस फिल्म में सम्राट अशोक का किरदार मोहन लाल ने निभाया है। इस फिल्म को सफलता मिली थी और लोगों को सम्राट अशोक की जीवनी से अधिक से अधिक जानकारी मिली।
- चक्रवर्ती सम्राट अशोक (2015) – इस सीरियल का निर्माण स्टार प्लस चैनल द्वारा किया गया था। इसमें मोहित रैना ने सम्राट अशोक का किरदार निभाया था। यह सीरियल भी बहुत प्रशंसा की गई थी और लोगों ने इसको खूब पसंद किया था।
- अशोक वाणी (1992) – इस सीरियल में सम्राट अशोक का किरदार एक बार्बर द्वारा निभाया गया था। यह सीरियल भारतीय टेलीविजन पर दिखाया गया था और इसके माध्यम से भी लोगों को सम्राट अशोक की जीवनी के बारे में जानकारी मिली।
कुछ प्रमुख प्रश्न और उनके जवाब:(Samrat Ashok History in Hindi)
FAQ
Q-सम्राट अशोक का जन्म कब हुआ था?
Ans: सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था।
Q- सम्राट अशोक की पत्नी का क्या नाम था?
Ans: सम्राट अशोक की दो पत्नियों का नाम होता है – देवी तिष्यरक्षिता और देवी करुवकी.
Q-सम्राट अशोक के प्रसिद्ध सूत्र क्या हैं?
Ans: सम्राट अशोक के प्रसिद्ध सूत्र हैं – धर्ममा एवं प्रजामा (Dhamma and Praja-ma), विजय भोगमा (Victory and Enjoyment) और निजसुखमा (Personal Happiness).
Q-सम्राट अशोक ने किस धर्म का प्रचार किया था?
Ans: सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया था।
Q-सम्राट अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में कौन-कौन से विकास हुए थे?
Ans: सम्राट अशोक के शांतिपूर्ण शासनकाल में भारत में विज्ञान, तकनीक, कला, लेखन, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में विकास हुआ था।
Q-सम्राट अशोक की मृत्यु कब हुई थी?
Ans: सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में हुई थी।
