कश्मीर से कन्याकुमारी तक अब रेल सफर होगा आसान

कश्मीर से कन्याकुमारी तक अब रेल सफर होगा आसान

यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट कैसे बदल रहा है जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

दिल्ली। जम्मू-कश्मीर को भारतीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ने का सपना अब साकार हो चुका है। उधमपुर–श्रीनगर–बारामुला रेलवे परियोजना ने सिर्फ ट्रेनों की पटरी नहीं बिछाई, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लाखों लोगों की जिंदगी को भी एक नई दिशा दी है। कभी वो दिन थे जब जम्मू-कश्मीर के सुदूर गांवों से बाहर निकलना एक सपना लगता था। फुटपाथों पर चलकर, नदी पार करके और घंटों की यात्रा के बाद लोग शहर पहुंचते थे।

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अब ‘रेल’ की सीटी इन वादियों में गूंज रही है। उधमपुर से बारामुला तक की यह ऐतिहासिक रेल परियोजना न केवल ट्रेनों की पटरियों को जोड़ रही है, बल्कि दिलों, बाज़ारों और सपनों को भी जोड़ रही है। इस प्रोजेक्ट ने कश्मीर की तस्वीर ही बदल दी है। गांव अब शहर बन रहे हैं, रोजगार के मौके बढ़ रहे हैं, और हर कोना अब ‘भारत’ से सीधे जुड़ रहा है।

इस प्रोजेक्ट का ये है इतिहास

इस ऐतिहासिक योजना की नींव 1892 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा रखी गई थी। कई दशकों तक ये योजना सिर्फ कागजों तक सीमित रही, लेकिन 2002 में इसे “राष्ट्रीयपरियोजना” घोषित कर केंद्र सरकार ने नया जीवन दिया।

इस तरह लिया आकार

  • 2005: जम्मू-उधमपुर सेक्शन शुरू
  • 2009: बारामुला से काज़िगुंड तक रेल सेवा शुरू
  • 2014: उधमपुर-कटरा रेल सेवा शुरू
  • 2024: बनिहाल से संगलदान तक की लाइन चालू

रोजगार का निर्माण:

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रेलवे प्रोजेक्ट को ज़मीन देने वाले परिवारों को सरकारी नौकरी दी गई। निर्माण एजेंसियों ने 14 हजार लोगों को रोजगार दिया। जिनमें से 65प्रतिशत लोग स्थानीय थे। इस प्रोजेक्ट ने 5.25 करोड़ मानव-दिवस का रोजगार उत्पन्न किया। टनलिंग, ब्रिज वर्क, इलेक्ट्रिफिकेशन और अन्य तकनीकी कामों से स्थानीय मजदूर अब कुशल कारीगर बन गए हैं, जो अब देश के अन्य बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं।

पहुंच और कनेक्टिविटी में क्रांति

दुर्गम गांवों तक पहुंच के लिए 215 किमी से अधिक सड़कों का निर्माण हुआ। जिससे 70 से अधिक गांव सड़क नेटवर्क से जुड़े। गूनी, बैक्कल, डुग्गा, सुरूकोट, खारी, मेगदार आदि गांव अब शहरों से जुड़े हैं। जहां पहले लोग सिर्फ पगडंडी से सफर करते थे।

स्थानीय व्यापार को बढ़ावा

अब किसान, बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद (जैसे केसर, सेब, हस्तशिल्प) देशभर में बेच सकते हैं। रॉ मटेरियल और तैयार सामान की आसान ढुलाई से छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा। ट्रांसपोर्टेशन आसान होने से कृषि उत्पाद जैसे सेब और केसर अब समय पर देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचेंगे, जिससे व्यापार बढ़ेगा।

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