भूख से हुई थी माता-पिता की मौत, आज 125 साल के स्वामी शिवानंद के चरणों में झुका देश

भूख से हुई थी माता-पिता की मौत, आज 125 साल के स्वामी शिवानंद के चरणों में झुका देश

स्वामी शिवानंद एक मामूली सी कद काठी, बेहद मामूली सक्ल और बेहद सादे से कपड़े,लेकिन असाधारण सी उपलब्धि, राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल और तालियों की गड़गड़ाहट ये दोनों परिचय जिन सक्स के हैं वो एक संत हैं।

काशी के संत एक छोटे से घर में रहने वाले और मामूली सा जीवन जीने वाले 125 साल के स्वामी शिवानंद को पद्म सम्मान मिलने की ये तस्वीरें जितनी ज्यादा उनके लिए खास हैं उससे ज्यादा देश के लिए जो देख रहा है 125 साल के एक सक्स को कुछ ऐसे सम्मानित होते हुए।

125 साल के शिवानंद स्वामी का नाम पद्मश्री के लिए बोला गया तो वो पहले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के पास ऐसे पहुंचे एक आम आदमी की दाकत यही थी कि प्रधानमंत्री जी ने भी उन्हें झुककर प्रणाम किया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने तो उन्हें अपने हाथों से उठा लिया, पुरूस्कार दिया, मुस्कुराकर आशीर्वाद लिया और तस्वीरें देश के सामने रख दी गई। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित स्वामी शिवानंद अब देश के लिए प्रेरणा का कारण बन गए हैं।

स्वामी शिवानंद जो वाराणसी के भेलूपुर मोहल्ले के कबीरनगर कॉलोनी में रहते हैं,वो सुबह 3 बजे उठकर नियम से उबला हुआ खाना खाते हैं। दूध और फल नहीं खाते, कहते हैं कि गरीबों को ये चीजें नसीब नहीं होती। 8 अगस्त 1896 को अविभाजित बांग्लादेश के श्री हट जिले में जन्मे स्वामी शिवानंद का जीवन इतना साधारण सा है कि हर एक इंसान उनके छोटे से घर में अपना जीवन देख सकता है।

125 साल की उम्र में स्वामी शिवानंद अपने सारे काम खुद से करते हैं।चेत्नयता ऐसी है के बड़े-बड़े लोग उसका लोहा मानते हैं,योग करते हैं आम दिनचर्या के सारे काम भी खुद से करते हैं।

इस उम्र में भी कोई बिमारी या आंखों पर चश्मा नहीं है आप उन्हें देखेंगे तो दंग रह जाएंगे। शिवानंद बाबा बताते हैं कि वह हमेशा सादा भोजन करते हैं और कभी भी तेल-मसाले वाला आहार नहीं लेते, विवाह नहीं किया है और इस उम्र में भी कोई स्वार्थ रोग नहीं है।

बाबा शिवानंद जिनको राष्ट्रपति भवन के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, बाबा शिवानंद जिनके सामने खुद पीएम मोदी झुके हैं। वही बाबा शिवानंद जिनके माता-पिता का एक समय भूख से निधन हो गया था।

बाबा शिवानंद के माता-पिता बेहद गरीब थे, वो भीख मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। जब एक दिन भूख के कारण इनके माता-पिता का निधन हुआ तो स्वामी शिवानंद ने आधा पेट भोजन करने का संकल्प ले लिया।

उन्होंने आश्रम में शिक्षा ली और उसके बाद 1977 में वृंदावन चले गए। वृंदावन में दो साल रहने के बाद 1979 में बाबा काशी आ गए और तभी से ही वाराणसी में रहते हैं।बाबा शिवानंद का कहना है कि उन्हें काशी में जो शांति मिलती है वो कहीं नहीं मिलती।

उनसे ये सवाल हुआ कि क्या वो उन संतों जैसे नहीं है जो बड़ी-बड़ी इमारतों और बड़ी-बड़ी विदेशी गाड़ियों में रहते हैं?

शिवानंद बाबा ने कहा कि उन्हें बड़ी इमारतों में सुख नहीं मिलता होगा मुझे काशी में जो सुख मिलता है वो कहीं नहीं।बाबा शिवानंद की कहानी देश के लिए एक मिसाल है सबसे बड़ी बात ये कि पद्म सम्मान से सम्मानित होते समय भी उन्होंने वो सादे कपड़े ही पहन रखे थे जो किन्हीं आम दिनों में पहनते थे।

बाबा शिवानंद ने सिखाया कि सादा जीवन और समाज के प्रति उनकी सेवा का प्रयास इस बार राष्ट्रपति भवन में सिद्ध हुआ है , बाबा शिवानंद जैसे लोग ही अस्ली हिन्दुस्तान हैं अस्ली काशी , मां गंगा की काशी , बाबा विश्वनाथ की काशी।

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